We News 24 » रिपोर्टिंग सूत्र / अनिल पाटिल
मुंबई :- दशहरा के मौके पर महाराष्ट्र में एकनाथ शिंदे और उद्धव ठाकरे के बीच बयानबाजी ने राजनीतिक माहौल को गर्मा दिया। एकनाथ शिंदे ने उद्धव ठाकरे पर निशाना साधते हुए कहा कि उनके नेतृत्व में शिवसेना ने अपनी मूल विचारधारा से समझौता किया। दूसरी ओर, उद्धव ठाकरे ने शिंदे पर पलटवार करते हुए उन्हें शिवसेना के सिद्धांतों से भटकने वाला करार दिया और उन पर विश्वासघात का आरोप लगाया। दोनों नेताओं की तीखी टिप्पणियों ने राजनीतिक सरगर्मियों को और बढ़ा दिया है।दशहरा रैली के मौके पर महाराष्ट्र के राजनीतिक परिदृश्य में एक बार फिर से तीखी बयानबाजी देखने को मिली। मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे और शिवसेना प्रमुख उद्धव ठाकरे ने एक-दूसरे पर जमकर निशाना साधा और रैली को राजनीतिक अखाड़ा बना दिया।
ये भी पढ़े-फारूक अब्दुल्ला ने कश्मीरी पंडितों को अपने घर कश्मीर लौटने को कहा
शिंदे की तीखी आलोचना
मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे ने उद्धव ठाकरे पर निशाना साधते हुए उनकी नेतृत्व क्षमता पर सवाल उठाए। उन्होंने कहा कि उद्धव ने शिवसेना की परंपराओं और आदर्शों को भुला दिया है। शिंदे ने ठाकरे पर आरोप लगाया कि उन्होंने परिवारवाद को बढ़ावा दिया और पार्टी के निष्ठावान कार्यकर्ताओं की उपेक्षा की। शिंदे ने यह भी कहा कि अब समय आ गया है कि शिवसेना को असली नेतृत्व मिले जो बालासाहेब ठाकरे के विचारों को आगे बढ़ा सके।
उद्धव का पलटवार
उधर, उद्धव ठाकरे ने शिंदे पर पलटवार करते हुए कहा कि शिंदे ने शिवसेना के साथ विश्वासघात किया है। उन्होंने शिंदे पर पार्टी को तोड़ने और सत्ता की लालसा में मूल सिद्धांतों से समझौता करने का आरोप लगाया। ठाकरे ने कहा कि शिंदे ने निजी स्वार्थ के लिए पार्टी के सिद्धांतों और मूल्यों को दांव पर लगा दिया। उन्होंने शिंदे को याद दिलाया कि शिवसेना सिर्फ एक पार्टी नहीं, बल्कि एक विचारधारा है, जिसे कोई तोड़ नहीं सकता।
दशहरा रैली का महत्व
दशहरा रैली हमेशा से ही शिवसेना के लिए महत्वपूर्ण रही है, जहां से पार्टी अपने विचार और आगामी नीतियों की घोषणा करती है। इस बार की रैली में दोनों नेताओं के बीच की तकरार ने यह स्पष्ट कर दिया कि महाराष्ट्र की राजनीति में अभी भी बहुत कुछ बदलाव हो सकते हैं।
राजनीतिक माहौल
इस तरह की बयानबाजी ने राज्य में राजनीतिक माहौल को और गर्मा दिया है। दोनों नेताओं के समर्थक भी अपने-अपने नेताओं का समर्थन करते हुए सड़कों पर उतर आए हैं, जिससे तनावपूर्ण स्थिति बन गई है। आगामी चुनावों के मद्देनजर इस प्रकार की घटनाएं महत्वपूर्ण हो जाती हैं, क्योंकि यह दर्शाता है कि कौन सा नेता अधिक प्रभावशाली और मजबूत है।
निष्कर्ष
दशहरा रैली के इस घटनाक्रम ने यह स्पष्ट कर दिया है कि महाराष्ट्र की राजनीति में आने वाले दिनों में और भी उथल-पुथल देखने को मिल सकती है। दोनों नेताओं ने अपनी-अपनी स्थिति को मजबूत करने के लिए जमकर बयानबाजी की और इससे राज्य की राजनीति में नई दिशा तय होने की संभावना है।
वी न्यूज 24 फॉलो करें और रहे हर खबर से अपडेट
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें