We News 24 Digital News» रिपोर्टिंग सूत्र / काजल कुमारी
नई दिल्ली :- प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का यह बयान चीन की विस्तारवादी नीतियों पर एक स्पष्ट टिप्पणी है। उन्होंने ब्रुनेई के सुल्तान के साथ बैठक के दौरान विकास की नीति की बात की और विस्तारवाद की निंदा की, जिससे यह संदेश भेजा कि भारत विकास और सहयोग में विश्वास करता है न कि विस्तारवादी रवैये में। इस बयान को चीन के लिए एक कड़ा संदेश माना जा रहा है, खासकर दक्षिण चीन सागर में चीन के साथ चल रहे विवाद को देखते हुए।क्योंकि चीन का कई देशों के साथ सीमा विवाद चल रहा है. जानकारी के लिए बता दें कि चीन और ब्रुनेई के बीच दक्षिण चीन सागर को लेकर भी विवाद है.
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प्रधानमंत्री मोदी का चीन की विस्तारवादी नीतियों पर तीखा रुख निरंतर बना हुआ है। जुलाई 2020 में लद्दाख दौरे के दौरान उनका “विस्तारवाद का युग खत्म” बयान, और फरवरी 2014 में अरुणाचल प्रदेश के मुद्दे पर की गई आलोचना, दोनों ही इस बात को दर्शाते हैं कि मोदी चीन के विस्तारवादी दृष्टिकोण को लेकर कितने गंभीर हैं। यह लगातार आलोचना भारत के राष्ट्रीय हितों की रक्षा और क्षेत्रीय स्थिरता को बनाए रखने की दिशा में उनकी दृढ़ स्थिति को स्पष्ट करती है।
चीन की सीमाएं 14 देशों से मिलती हैं और उसके लगभग सभी पड़ोसियों के साथ सीमा विवाद है, जो उसकी विस्तारवादी नीतियों को दर्शाता है। चीन ने अपनी सीमा पर धीरे-धीरे कब्जा जमाया है और इस कारण उसे विस्तारवादी कहा जाता है। इसके विशाल क्षेत्रफल के कारण (97 लाख वर्ग किलोमीटर से अधिक) चीन की भू-राजनीतिक स्थिति और भी जटिल हो जाती है। उसकी इन नीतियों से कई पड़ोसी देशों के साथ तनाव और विवाद पैदा हुए हैं। भारत, अफगानिस्तान, भूटान, कजाखस्तान, उत्तर कोरिया, किर्गिस्तान, लाओस, मंगोलिया, म्यांमार, नेपाल, पाकिस्तान, रूस, ताजिकिस्तान और वियतनाम ,शामिल है और अन्य देशों के साथ उसकी सीमा पर विवाद इसका एक प्रमुख उदाहरण है।
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