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नई दिल्ली :- बांग्लादेश में हिंदुओं पर अत्याचार की इन्तहा हो चुकी है. बांग्लादेश में अब ऐसा कुछ होने वाला है जिससे लगता है कि वहां हिंदुओं के द एंड का उलटी गिनती शुरू हो गई है. बांग्लादेश में संविधान से सेक्युलर शब्द हटाने की बात हो रही है. अगर ऐसा हुआ तो बांग्लादेश दूसरा पाकिस्तान बन जाएगा. दावा है कि जब 90 फीसदी मुसलमान हैं तो फिर सेक्युलरिज्म की जरूरत ही क्या है. बांग्लादेश में उठती इस डिमांड के मायने क्या हैं और क्या भविष्य में भारत में भी ऐसा ही देखने को मिल सकता है.
क्या बांग्लादेश को धर्मनिरपेक्षता की जरूरत नहीं है?
बांग्लादेशी संविधान से धर्मनिरपेक्ष शब्द को हटाने की मांग इस बात की ओर इशारा करती है कि वहां की सरकार में कट्टरपंथ का प्रभाव बढ़ रहा है। बांग्लादेश के अटॉर्नी जनरल मोहम्मद असदुज्जमा ने हाईकोर्ट में कहा कि उनके देश को धर्मनिरपेक्षता की कोई जरूरत नहीं है। इसके साथ ही बांग्लादेश के संविधान से बंगाली राष्ट्रवाद को हटाने की भी बात हो रही है। 2011 में तत्कालीन शेख हसीना सरकार ने बांग्लादेश को धर्मनिरपेक्ष देश घोषित किया था।
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संविधान से धर्मनिरपेक्ष शब्द हटाने का मतलब
अगर संविधान से धर्मनिरपेक्ष शब्द हटा दिया जाता है, तो इसका मतलब यह होगा कि बांग्लादेश एक पूर्ण मुस्लिम राष्ट्र बन सकता है। यह फैसला देश के गैर-मुस्लिम नागरिकों के लिए कई तरह की परेशानियां खड़ी कर सकता है। धर्मनिरपेक्षता संविधान में सभी धर्मों को धार्मिक स्वतंत्रता प्रदान करती है, लेकिन इसे हटाने से बांग्लादेश में इस्लामी क्रांति के नाम पर अन्य धर्मों के खात्मे की संभावना बढ़ सकती है।
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क्या भारत में भी ऐसा हो सकता है?
हालांकि, बांग्लादेश में यह दावा किया जा रहा है कि संविधान संशोधन के बाद भी हिंदू और अन्य अल्पसंख्यक अपने धर्म का पालन करने के लिए स्वतंत्र होंगे, लेकिन वहां के हालात और कट्टरपंथी घटनाओं को देखते हुए यह दावा संदिग्ध लगता है। भारत में ऐसी स्थिति की संभावना कम है, क्योंकि भारत का संविधान धर्मनिरपेक्षता और सभी धर्मों के लोगों के अधिकारों की दृढ़ता से रक्षा करता है। हालांकि, जिन इलाकों में मुस्लिम आबादी बढ़ रही है, वहां सांप्रदायिक तनाव की खबरें आती रहती हैं, लेकिन भारत की विविधता और संवैधानिक ढांचा उसे बांग्लादेश जैसी स्थिति में आने से रोकता है।
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