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रविवार, 8 सितंबर 2024

कारगिल युद्ध को लेकर पाकिस्तान का बड़ा कबूलनामा, आर्मी चीफ ने पाकिस्तान में मचाई खलबली

कारगिल युद्ध को लेकर पाकिस्तान का बड़ा कबूलनामा, आर्मी चीफ ने पाकिस्तान में मचाई खलबली






We News 24 Digital News» रिपोर्टिंग सूत्र   एजेंसी 


Pakistan Army Chief on Kargil War::- पाकिस्तान के सेना प्रमुख जनरल असीम मुनीर द्वारा करगिल युद्ध और अन्य संघर्षों में पाकिस्तान की भूमिका को सार्वजनिक रूप से स्वीकार करना एक महत्वपूर्ण घटना है। करगिल युद्ध के दौरान पाकिस्तान ने लंबे समय तक इस बात से इनकार किया था कि उसके सैनिक इस संघर्ष में सीधे शामिल थे। हालांकि, अब जनरल मुनीर का बयान इस बात को स्पष्ट करता है कि पाकिस्तान की सेना 1999 के करगिल युद्ध समेत कई युद्धों में सक्रिय रूप से भागीदार रही है, और उनके सैनिकों की जानें गईं।

यह बयान पाकिस्तान के डिफेंस डे के अवसर पर दिया गया, जो एक ऐसा दिन है जब पाकिस्तान अपनी सेना और उसके बलिदानों का सम्मान करता है। जनरल मुनीर ने 1948, 1965, 1971 और 1999 के युद्धों में पाकिस्तानी सैनिकों की शहादत की चर्चा की, जिससे यह स्पष्ट होता है कि पाकिस्तान ने उन संघर्षों में अपनी सैन्य भूमिका को अब सार्वजनिक रूप से स्वीकार किया है।

इस स्वीकारोक्ति से यह भी साफ हो जाता है कि पाकिस्तान की सेना ने भारत के खिलाफ लगातार युद्ध प्रयास किए हैं, हालांकि पाकिस्तान पहले इन संघर्षों में अपनी सक्रियता को लेकर स्पष्ट रूप से इनकार करता रहा है। 



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बिल क्लिंटन ने शरीफ से बात की थी


1999 के करगिल युद्ध के दौरान, अमेरिका के तत्कालीन राष्ट्रपति बिल क्लिंटन ने पाकिस्तान के प्रधानमंत्री नवाज शरीफ पर दबाव डाला था कि वे अपनी सेना को करगिल से वापस बुला लें। यह उस समय की एक महत्वपूर्ण कूटनीतिक घटना थी। अमेरिका और अंतरराष्ट्रीय समुदाय ने पाकिस्तान पर युद्धविराम की अपील की थी, क्योंकि भारत और पाकिस्तान के बीच यह संघर्ष एक बड़ी युद्ध में बदल सकता था, जिसके परमाणु युद्ध में बदलने का खतरा भी था।

नवाज शरीफ ने उस समय सार्वजनिक रूप से यह स्वीकार नहीं किया था कि पाकिस्तानी सैनिक इस संघर्ष में शामिल थे, और पाकिस्तान ने अपने सैनिकों की भागीदारी को एक "मुक्ति संग्राम" के रूप में प्रस्तुत करने की कोशिश की थी, जिसमें स्थानीय लड़ाके शामिल थे। यहां तक कि पाकिस्तान ने अपने जवानों के शवों को स्वीकार करने से भी इनकार कर दिया, और उन्हें "घुसपैठियों" या "जिहादी लड़ाकों" के रूप में वर्णित किया गया।


बिल क्लिंटन के साथ बैठक के बाद नवाज शरीफ पर युद्ध समाप्त करने और सेना को वापस बुलाने का दबाव और बढ़ गया। अंततः पाकिस्तान को अंतरराष्ट्रीय दबाव के कारण पीछे हटना पड़ा, और शरीफ की सरकार ने सेना को करगिल से वापस बुलाने के आदेश दिए। लेकिन उस समय तक पाकिस्तान की भूमिका को पूरी तरह से छिपाने की कोशिश की जा रही थी।


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भारत ने कारगिल में तिरंगा फहराया था

करगिल युद्ध के दौरान, भारत ने पाकिस्तान की सेना की भागीदारी को लेकर स्पष्ट और ठोस सबूत प्रस्तुत किए थे। भारतीय सेना ने करगिल में पकड़े गए पाकिस्तानी सैनिकों के हथियार, पाकिस्तानी सेना की वर्दी, और युद्ध बंदियों को मीडिया और अंतरराष्ट्रीय समुदाय के सामने पेश किया था, ताकि यह साबित किया जा सके कि यह संघर्ष पाकिस्तानी सेना द्वारा सुनियोजित और संचालित था। इसके बावजूद, पाकिस्तान लगातार इस बात से इनकार करता रहा कि उसकी नियमित सेना करगिल युद्ध में शामिल थी, और इसे एक स्थानीय मुक्ति संग्राम के रूप में प्रस्तुत करने की कोशिश की।

सबसे चौंकाने वाली बात यह थी कि पाकिस्तान ने करगिल में मारे गए अपने सैनिकों के शवों को स्वीकार करने से भी इनकार कर दिया। भारतीय सेना ने युद्ध के बाद कई पाकिस्तानी सैनिकों के शव बरामद किए थे, जिन्हें मानवीय आधार पर करगिल में ही दफनाया गया। भारत ने इन घटनाओं के प्रमाण भी प्रस्तुत किए, जिसमें उन स्थानों को दिखाया गया था जहाँ पाकिस्तानी सैनिकों को दफनाया गया था। इन सभी प्रमाणों के बावजूद, पाकिस्तान ने अपने सैनिकों की भागीदारी और उनकी मौतों को स्वीकार नहीं किया।

यह घटना न केवल पाकिस्तान के इनकार की रणनीति को उजागर करती है, बल्कि यह भी दिखाती है कि पाकिस्तान अपने सैनिकों के बलिदान को भी अंतरराष्ट्रीय स्तर पर मान्यता देने से पीछे हट गया था। पाकिस्तान का यह रवैया उसकी कूटनीतिक स्थिति को कमजोर करता रहा, और दुनिया के सामने उसकी जिम्मेदारी को उजागर किया।


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पाकिस्तान की नापाक हरकत

1999 में करगिल युद्ध के दौरान, भारत के तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने शांति और बातचीत के माध्यम से युद्ध को टालने की बहुत कोशिश की थी। उनकी सरकार ने पाकिस्तान के साथ कूटनीतिक प्रयासों पर जोर दिया, खासकर वाजपेयी की ऐतिहासिक लाहौर बस यात्रा के माध्यम से, जिसमें उन्होंने शांति और मित्रता के संदेश के साथ पाकिस्तान की यात्रा की थी। लेकिन पाकिस्तान ने इन प्रयासों के बावजूद करगिल सेक्टर में घुसपैठ कर अपनी हरकतों को जारी रखा।

करगिल युद्ध तब शुरू हुआ जब भारतीय सेना ने देखा कि पाकिस्तानी सैनिकों ने नियंत्रण रेखा (एलओसी) पार कर भारतीय क्षेत्र में ऊँचाई वाले क्षेत्रों पर कब्जा कर लिया है। पाकिस्तान ने इन पहाड़ी क्षेत्रों में घुसपैठियों और अपने सैनिकों को भेजकर सामरिक रूप से महत्वपूर्ण स्थानों पर कब्जा करने की कोशिश की, ताकि भारत को सामरिक और कूटनीतिक नुकसान पहुंचाया जा सके।

इसके बाद भारतीय सेना ने बड़े पैमाने पर जवाबी कार्रवाई की और ऑपरेशन "विजय" की शुरुआत की। तीन महीने तक चले इस कठिन संघर्ष में भारतीय सैनिकों ने साहस और दृढ़ संकल्प का परिचय दिया। करगिल के सबसे महत्वपूर्ण क्षेत्रों में से एक टाइगर हिल पर भारतीय सेना ने कब्जा किया, जो रणनीतिक दृष्टि से महत्वपूर्ण था। इसके अलावा, अन्य हिस्सों पर भी सफलतापूर्वक नियंत्रण स्थापित किया गया और एलओसी की स्थिति को पुनः बहाल किया गया।

इस युद्ध में भारत ने न केवल अपनी सैन्य क्षमता का प्रदर्शन किया, बल्कि यह भी दिखाया कि वह अपनी सीमाओं की सुरक्षा के लिए हर संभव प्रयास करेगा। करगिल युद्ध की जीत ने भारतीय सेना के शौर्य और रणनीतिक कौशल को वैश्विक स्तर पर स्थापित किया।


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