We News 24 » रिपोर्टिंग सूत्र / दीपक कुमार
नई दिल्ली :- दिल्ली में बढ़ते वायु प्रदूषण के मुद्दे पर केंद्र और राज्य सरकार दोनों पर सवाल उठना स्वाभाविक है, क्योंकि इस समस्या का समाधान तभी संभव है जब सभी संबंधित एजेंसियां मिलकर काम करें। हालांकि, प्रदूषण की समस्या पर जवाबदेही का मुद्दा काफी जटिल है और कई स्तरों पर विफलताओं की ओर इशारा करता है।
1. पराली जलाने का मुद्दा:
- केंद्र और पड़ोसी राज्य सरकारों की नाकामी: हर साल पराली जलाने से दिल्ली में प्रदूषण का स्तर बढ़ता है, लेकिन किसानों को इसके वैकल्पिक समाधान के लिए प्रभावी मदद नहीं मिल पाई है। पंजाब, हरियाणा, और उत्तर प्रदेश में किसानों के पास पराली प्रबंधन के लिए पर्याप्त संसाधन नहीं हैं। केंद्र और राज्य सरकारों ने पराली प्रबंधन के लिए कई योजनाएं बनाई हैं, लेकिन ज़मीनी स्तर पर उनका प्रभाव बहुत कम है।
- पराली न जलाने के लिए किसानों को सस्ते या मुफ्त में उपकरण देने के उपायों पर अब भी पूरी तरह से अमल नहीं हो पाया है।
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2. वाहन प्रदूषण और ट्रैफिक का मुद्दा:
- दिल्ली सरकार: दिल्ली में वाहन प्रदूषण का स्तर भी काफी ऊंचा है, और इसे कम करने के प्रयासों में दिल्ली सरकार ने कई नीतियां लागू की हैं, जैसे कि "ऑड-ईवन" योजना, सार्वजनिक परिवहन का विस्तार, और इलेक्ट्रिक वाहनों को बढ़ावा। फिर भी, ज़मीनी स्तर पर ये नीतियां पूरी तरह सफल नहीं हो पाई हैं।
- केंद्र सरकार: केंद्र के अंतर्गत आने वाले दिल्ली मेट्रो और भारतीय रेलवे जैसे परिवहन विकल्पों को प्रदूषण नियंत्रण में अधिक योगदान देने की जरूरत है, लेकिन दिल्ली में सड़क पर निजी वाहनों की संख्या बढ़ती जा रही है, जिससे प्रदूषण स्तर में कमी लाने में बाधा आ रही है।
3. निर्माण कार्य और औद्योगिक प्रदूषण:
- दिल्ली और केंद्र दोनों की ज़िम्मेदारी: निर्माण कार्यों से निकलने वाली धूल और निर्माण सामग्री से प्रदूषण बढ़ता है। दिल्ली सरकार ने निर्माण स्थलों पर प्रदूषण नियंत्रण के आदेश दिए हैं, लेकिन निगरानी और निरीक्षण के अभाव में यह नियम प्रभावी नहीं हो पाए हैं। केंद्र के अधीन आने वाले कई उद्योग भी दिल्ली के आसपास स्थित हैं, जिनसे भी प्रदूषण होता है।
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4. वायु गुणवत्ता प्रबंधन पर असंगठित कदम:
- समन्वय की कमी: केंद्र और राज्य सरकार दोनों ने अपने-अपने स्तर पर कदम उठाए हैं, लेकिन इन कदमों के बीच समन्वय का अभाव है। वायु गुणवत्ता प्रबंधन के लिए गठित CAQM जैसी संस्थाएं भी इस मामले में एक मजबूत दृष्टिकोण अपनाने में सफल नहीं हुई हैं।
- लंबी अवधि के समाधान की कमी: मौजूदा योजनाएं तात्कालिक राहत देती हैं, लेकिन वायु प्रदूषण के लिए एक स्थायी समाधान की ओर ध्यान नहीं दिया जा रहा है।
5. सभी एजेंसियों के बीच बेहतर समन्वय की कमी:
- एक प्रभावी और दीर्घकालिक समाधान के लिए केंद्रीय और राज्य एजेंसियों, स्थानीय निकायों, और अन्य प्राधिकरणों के बीच समन्वय की आवश्यकता है। इसका अभाव साफ दिखाई देता है, जिससे प्रदूषण नियंत्रण की दिशा में लगातार बाधाएं आती हैं।
नतीजा:
केंद्र और राज्य सरकार दोनों पर सवाल उठ रहे हैं क्योंकि आम जनता के स्वास्थ्य और जीवन की गुणवत्ता को प्रभावित करने वाले इस गंभीर मुद्दे पर ज़िम्मेदार एजेंसियां ठोस और दीर्घकालिक समाधान देने में विफल रही हैं। प्रदूषण एक ऐसी समस्या है, जिसे केंद्र और राज्य सरकार दोनों को मिलकर सुलझाना होगा, ताकि भविष्य में लोगों को स्वच्छ और स्वस्थ वातावरण मिल सके।
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