We News 24 » रिपोर्टिंग सूत्र / अंजली कुमारी
नई दिल्ली:- 2029 के लोकसभा चुनावों में बढ़ी हुई सीटों के साथ चुनाव होने की संभावना के पीछे 2002 के परिसीमन कानून में 2026 तक सीटों की संख्या में वृद्धि पर लगी रोक का प्रमुख योगदान है। इस कानून के अनुसार, 2026 के बाद होने वाली जनगणना के आधार पर ही लोकसभा सीटों का परिसीमन किया जा सकता है। चूंकि 2021 की जनगणना कोविड-19 महामारी के कारण नहीं हो सकी थी, अब संभावना है कि यह जनगणना 2027 में होगी।
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मुख्य बिंदु:
परिसीमन कानून 2002: 2002 के परिसीमन कानून में यह प्रावधान है कि 2026 तक लोकसभा की सीटों की संख्या नहीं बढ़ाई जाएगी। इसके बाद 2026 की जनगणना के आधार पर परिसीमन की प्रक्रिया शुरू होनी थी, लेकिन 2021 की जनगणना स्थगित होने से अब यह प्रक्रिया 2027 की जनगणना के आधार पर की जा सकती है।
2027 में जनगणना की संभावना: अगर जनगणना 2027 में होती है, तो उसी के आधार पर परिसीमन की प्रक्रिया आगे बढ़ेगी। इस तरह, 2002 के कानून में संशोधन की आवश्यकता नहीं होगी और 2029 के लोकसभा चुनाव परिसीमन के बाद नई सीटों के आधार पर हो सकते हैं।
बढ़ी हुई सीटों का प्रभाव: यदि लोकसभा सीटों की संख्या 543 से बढ़ाकर 750 की जाती है, तो यह देश के विभिन्न हिस्सों में राजनीतिक समीकरणों को बदल सकता है। उत्तर भारत, जहां जनसंख्या वृद्धि अधिक है, को अधिक सीटें मिल सकती हैं, जबकि दक्षिणी राज्यों के प्रतिनिधित्व में कमी आने की संभावना है। इससे क्षेत्रीय असंतुलन की स्थिति पैदा हो सकती है, जिसे लेकर दक्षिणी राज्यों में विरोध देखा जा रहा है। आइए जानते हैं इसके कारण:
1. दक्षिणी राज्यों की जनसंख्या वृद्धि दर:
दक्षिणी राज्यों ने जनसंख्या नियंत्रण के प्रयासों को बेहतर तरीके से लागू किया है, जिससे उनकी जनसंख्या वृद्धि दर उत्तरी और मध्य भारतीय राज्यों की तुलना में काफी कम रही है। यदि लोकसभा सीटों का परिसीमन जनसंख्या के आधार पर किया जाता है, तो उत्तरी राज्यों की सीटें बढ़ जाएंगी, जबकि दक्षिणी राज्यों को अपेक्षाकृत कम प्रतिनिधित्व मिलेगा, जो उन्हें नुकसान पहुंचा सकता है।
2. प्रतिनिधित्व में असंतुलन:
दक्षिणी राज्यों को यह डर है कि परिसीमन के बाद उनका प्रतिनिधित्व संसद में घट सकता है, क्योंकि उत्तरी और पूर्वी राज्यों की आबादी तेजी से बढ़ रही है। इससे संसद में दक्षिण के राज्यों की आवाज कमजोर पड़ सकती है, जबकि वे देश के सकल घरेलू उत्पाद (GDP) में महत्वपूर्ण योगदान करते हैं और विकास के मामले में अग्रणी हैं।
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3. आर्थिक योगदान और संसाधनों का असंतुलन:
दक्षिणी राज्यों का तर्क है कि उनके पास बेहतर विकास दर और आर्थिक योगदान है, जबकि आबादी कम होने के कारण वे केंद्र सरकार से कम संसाधन और राजनीतिक प्रतिनिधित्व प्राप्त करेंगे। वे इस असंतुलन को अनुचित मानते हैं, क्योंकि यह उनके विकास और भविष्य की योजनाओं पर नकारात्मक असर डाल सकता है।
4. विकासशील राज्यों के लिए चुनौती:
दक्षिणी राज्यों का मानना है कि यदि जनसंख्या के आधार पर सीटों का पुनर्वितरण किया जाता है, तो यह जनसंख्या नियंत्रण करने वाले राज्यों के लिए एक सजा की तरह होगा। इसके विपरीत, उन राज्यों को अधिक लाभ मिलेगा, जिन्होंने जनसंख्या नियंत्रण की दिशा में अपेक्षाकृत कम प्रयास किए हैं।
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निष्कर्ष:
लोकसभा की सीटों में संभावित वृद्धि एक बड़ा संवैधानिक और राजनीतिक मुद्दा बन सकता है, विशेष रूप से तब जब यह परिसीमन प्रक्रिया से जुड़ा हुआ है। दक्षिणी राज्यों के लिए यह महत्वपूर्ण है कि उनकी राजनीतिक आवाज संसद में कमजोर न हो, जबकि वे देश के विकास में एक प्रमुख भूमिका निभा रहे हैं। इस मामले पर आने वाले समय में और भी चर्चा और बहस की संभावना है।
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