We News 24 » रिपोर्टिंग सूत्र / काजल कुमारी
नई दिल्ली :- भारत में दवाओं की बढ़ती कीमतों के साथ-साथ उनकी गुणवत्ता में गिरावट आम लोगों के लिए बड़ी समस्या बनती जा रही है। हाल ही में केंद्रीय औषधि मानक नियंत्रण संगठन (CDSCO) ने 53 दवाओं को लैब क्वालिटी टेस्ट में फेल करार दिया है। इन दवाओं में हाई ब्लड प्रेशर और टाइप-2 डायबिटीज को नियंत्रित करने वाली दवाएं भी शामिल हैं, जो चिंता का विषय है।
भारत में डायबिटीज के 10 करोड़ से ज्यादा मरीज हैं और उच्च रक्तचाप के 20 करोड़ मरीज हैं। इन बीमारियों से पीड़ित लोग रोजाना दवाओं का सेवन करते हैं, और यदि ये दवाएं गुणवत्ताहीन होती हैं, तो यह उनके स्वास्थ्य के लिए गंभीर खतरा बन सकती है।
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प्रमुख फेल दवाएं:
टेल्मिसर्टन: हाई ब्लड प्रेशर को नियंत्रित करने वाली।
ग्लिमेपिराइड: टाइप-2 डायबिटीज को नियंत्रित करने वाली।
इन दवाओं को बनाने वाली कुछ कंपनियों की गुणवत्ता खराब पाई गई है, जबकि सभी कंपनियों की नहीं। उदाहरण के लिए:
मैसर्स, मैस्कॉट हेल्थ सीरीज़ प्रा. लिमिटेड द्वारा बनाई गई ग्लिमेपिराइड।
स्विस गार्नियर लाइफ कंपनी की टेल्मिसर्टन।
फेल दवाओं के सेवन से संभावित नुकसान: डॉ. अजय कुमार के अनुसार, ऐसी दवाओं का सेवन करने से लिवर और किडनी पर बुरा असर पड़ सकता है, खासकर जब यह दवाएं लंबे समय तक ली जाती हैं।
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लैब टेस्ट में फेल होने के कारण:
खराब मौसम या बैक्टीरिया के संपर्क में आना।
सेंपलिंग एरर।
फेल दवाओं की पहचान: डॉ. कुमार का सुझाव है कि दवा की पैकेजिंग पर निर्माता कंपनी का नाम पढ़कर दवा की पहचान की जा सकती है। जिन कंपनियों की दवाएं फेल हो गई हैं, उन्हें फिलहाल नहीं लेना चाहिए।
सरकार की भूमिका: सरकार को ड्रग रेगुलेटरी अथॉरिटी के माध्यम से कंपनियों को नोटिस जारी करना चाहिए और उचित कार्रवाई करनी चाहिए। इससे यह सुनिश्चित हो सकेगा कि भविष्य में ऐसी घटनाएं कम से कम हों और जनता को सुरक्षित और गुणवत्तापूर्ण दवाएं मिल सकें।
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