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गुरुवार, 26 सितंबर 2024

केजरीवाल का मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा देना नैतिकता या मजबूरी ? पढ़े पूरी इनसाइड स्टोरी

केजरीवाल का मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा देना नैतिकता या मजबूरी ,पढ़े पूरी इनसाइड स्टोरी





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We News 24 » रिपोर्टिंग सूत्र / दीपक कुमार 



नई दिल्ली:- कट्टर ईमानदारी का दम भरते हुए लगभग दस साल तक मुख्यमंत्री रहने के बाद आम आदमी पार्टी (AAP) के संयोजक अरविंद केजरीवाल को मुख्यमंत्री पद छोड़ना पड़ रहा है। अन्ना आंदोलन से निकले नेताओं ने मिलकर आम आदमी पार्टी बनाई थी। यह अलग बात है कि धीरे-धीरे पार्टी के लगभग सभी प्रमुख नेताओं को दरकिनार करते हुए अरविंद केजरीवाल ने AAP को अपने तक केंद्रित कर दिया। अब उनकी छवि भी ढलान पर है। संभवतः इसी रणनीति के तहत उन्होंने इस्तीफा दिया है ताकि दिल्ली विधानसभा चुनावों में इस मुद्दे को भुना सकें।



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अन्ना आंदोलन और AAP की स्थापना

अन्ना आंदोलन ने देश में भ्रष्टाचार के खिलाफ आम जनता के मन में एक नई उम्मीद जगाई थी। इस आंदोलन से प्रेरित होकर केजरीवाल और उनके सहयोगियों ने 2012 में आम आदमी पार्टी की स्थापना की। पार्टी ने पारदर्शिता और ईमानदारी के आदर्शों के साथ चुनाव लड़ा और 2013 में पहली बार दिल्ली विधानसभा चुनाव में शानदार प्रदर्शन किया। केजरीवाल ने अन्ना हजारे के नेतृत्व में भ्रष्टाचार विरोधी आंदोलन में प्रमुख भूमिका निभाई। यह आंदोलन जन लोकपाल बिल की मांग के साथ शुरू हुआ था। पार्टी का मुख्य उद्देश्य भ्रष्टाचार का उन्मूलन और पारदर्शिता थी।

  1. आंतरिक कलह: पार्टी के कई संस्थापक सदस्य, जैसे योगेंद्र यादव और प्रशांत भूषण, पार्टी से अलग हो गए थे। इन आंतरिक विवादों का पार्टी की छवि पर नकारात्मक प्रभाव पड़ा।
  2. आरोप और आरोप-प्रत्यारोप: AAP और उसके नेताओं पर समय-समय पर भ्रष्टाचार और गलत कार्यप्रणाली के आरोप लगे।
  3. राजनीतिक दबाव: अन्य राजनीतिक दलों द्वारा लगातार बढ़ते दबाव और चुनावी रणनीतियों ने भी केजरीवाल की स्थिति को कमजोर किया।


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AAP सरकार की शुरुआत और विवाद

दिल्ली की जनता ने AAP पर भरोसा जताया और सरकार बनाई। परंतु AAP सरकार के कार्यकाल में सरकार पर भ्रष्टाचार और कदाचार के आरोप बढ़ते गए। AAP के कई विधायकों और पार्षदों पर मुकदमे दर्ज हुए। कुछ प्रमुख घटनाएं:

  • महिलाओं के उत्पीड़न और भ्रष्टाचार के आरोप: निर्भया आंदोलन में बढ़-चढ़कर हिस्सा लेने वाली इस पार्टी के नेताओं पर महिलाओं के उत्पीड़न, भ्रष्टाचार, और मारपीट के कई आरोप लगे।
  • दिल्ली दंगों का आरोप: AAP के एक पार्षद पर दिल्ली दंगा भड़काने का गंभीर आरोप लगा और वह जेल भी गया।
  • केजरीवाल के निजी सचिव का मामला: हाल ही में अरविंद केजरीवाल के निजी सचिव को उन्हीं के आवास पर उन्हीं की पार्टी की महिला सांसद के साथ मारपीट करने के आरोप में जेल जाना पड़ा। उन्हें निचली अदालत और उच्च न्यायालय से जमानत नहीं मिली। तल्ख टिप्पणियों के बाद उच्चतम न्यायालय ने गवाहों की लंबी सूची को देखते हुए लगभग तीन माह बाद यह कहते हुए उन्हें जमानत दी कि मुकदमे पर विचार करने में समय लग सकता है।





अरविंद केजरीवाल की इस्तीफे की रणनीति

अरविंद केजरीवाल के इस्तीफे के पीछे की रणनीति संभवतः आगामी दिल्ली विधानसभा चुनावों में इसे एक मुद्दे के रूप में भुनाने की हो सकती है। वे इस इस्तीफे को जनता के सामने अपनी ईमानदारी और त्याग के प्रतीक के रूप में प्रस्तुत कर सकते हैं, जिससे चुनावों में उनकी पार्टी को फायदा हो सकता है।


आम आदमी पार्टी (AAP) की सरकार पर शिक्षण संस्थानों में वित्तीय अनियमितताओं का आरोप, पानी और सड़कों की समस्या, प्रशासनिक व्यवस्था में नाकामी सहित कई अन्य समस्याओं के समाधान में विफल रहने के आरोप लगते रहे हैं। इसके अलावा, AAP और उसके नेताओं पर अराजकता फैलाने के आरोप भी प्रारंभ से ही लगे हैं।

समस्याओं की सूची और विफलताएँ

  1. शिक्षण संस्थानों में वित्तीय अनियमितताएँ: कई शिक्षण संस्थानों में वित्तीय गड़बड़ियों के आरोप लगे हैं, जिससे शिक्षा की गुणवत्ता और संस्थानों की विश्वसनीयता पर सवाल उठे हैं।

  2. पानी की समस्या: दिल्ली में पानी की आपूर्ति और गुणवत्ता को लेकर लगातार समस्याएँ बनी हुई हैं। विभिन्न इलाकों में पीने के पानी की कमी और अशुद्ध पानी की आपूर्ति से जनता परेशान है।

  3. सड़कों की समस्या: सड़क निर्माण और मरम्मत के कार्य में धीमी गति और घटिया गुणवत्ता के कारण यातायात की समस्याएँ और दुर्घटनाएँ बढ़ी हैं।

  4. प्रशासनिक व्यवस्था में नाकामी: प्रशासनिक कार्यों में पारदर्शिता और जवाबदेही की कमी के कारण लोगों को विभिन्न सरकारी सेवाओं का लाभ समय पर नहीं मिल पा रहा है।


अराजकता फैलाने के आरोप

AAP सरकार और उसके नेताओं पर अराजकता फैलाने के आरोप भी लगते रहे हैं। इन आरोपों के प्रमुख बिंदु निम्नलिखित हैं:

  1. धरना प्रदर्शन: अपनी सरकार की नाकामियों को छिपाने के लिए AAP ने बार-बार धरना प्रदर्शन और विरोध रैलियों का सहारा लिया।

  2. उपराज्यपाल के खिलाफ टिप्पणी: AAP सरकार ने उपराज्यपाल के खिलाफ टिप्पणियाँ करके यह धारणा बनाने की कोशिश की कि केंद्र सरकार द्वारा उन्हें काम नहीं करने दिया जा रहा है।

झूठा विमर्श और वास्तविकता

AAP सरकार ने कई बार यह दावा किया कि केंद्र सरकार द्वारा दिल्ली सरकार को काम नहीं करने दिया जा रहा है। इस प्रकार की टिप्पणियाँ और प्रदर्शन AAP के वास्तविक कार्यों और नाकामियों को छिपाने के लिए किए गए प्रयास माने जा सकते हैं।

हालांकि, समय के साथ जनता के सामने इन झूठे दावों की असलियत सामने आ गई है और AAP की सरकार की वास्तविक कार्यक्षमता और उपलब्धियों पर प्रश्नचिह्न लग गए हैं। अब यह स्पष्ट हो चुका है कि केवल केंद्र सरकार को दोष देने से समस्याओं का समाधान नहीं हो सकता।


17 नवंबर 2021 को आम आदमी पार्टी (AAP) की सरकार ने दिल्ली में नई आबकारी नीति लागू की थी, जिसके तहत राजधानी को 32 जोनों में विभाजित किया गया था। हर जोन में 27 शराब की दुकानें खोलने का निर्णय लिया गया था, जिससे कुल 849 दुकानें खुलनी थीं। इस नई नीति के तहत दिल्ली की सभी शराब की दुकानों का निजीकरण कर दिया गया। पहले शराब की 60 प्रतिशत दुकानें सरकारी और 40 प्रतिशत निजी हाथों में थीं, लेकिन नई नीति के लागू होने के बाद 100 प्रतिशत निजीकरण हो गया।

नई आबकारी नीति और तर्क

दिल्ली सरकार ने नई आबकारी नीति के तहत निजीकरण को यह तर्क देते हुए उचित ठहराया कि इससे राजस्व में 3,500 करोड़ रुपये का फायदा होगा। इस कदम का उद्देश्य शराब की बिक्री में पारदर्शिता लाना और सरकारी राजस्व में वृद्धि करना था।

अनियमितताएँ और घोटाला

हालांकि, नई शराब नीति लागू होने के बाद अनियमितताओं और घोटाले के आरोप भी सामने आने लगे। इस घोटाले का खुलासा 8 जुलाई 2022 को दिल्ली के तत्कालीन मुख्य सचिव नरेश कुमार की रिपोर्ट से हुआ। रिपोर्ट में नीति में कई खामियों और अनियमितताओं का जिक्र था, जिसने सरकार की नीतियों और कार्यप्रणाली पर सवाल खड़े कर दिए।

प्रमुख आरोप

  1. अनियमितताएँ: नई शराब नीति के तहत दुकानें आवंटित करने में अनियमितताओं और भेदभाव के आरोप लगे।
  2. निजीकरण में भ्रष्टाचार: 100 प्रतिशत निजीकरण के बाद दुकानें आवंटित करने में भ्रष्टाचार के आरोप लगे, जिससे नीति की पारदर्शिता पर सवाल उठे।
  3. राजस्व का घाटा: सरकार द्वारा अनुमानित 3,500 करोड़ रुपये के फायदे के विपरीत, अनियमितताओं के कारण राजस्व में कमी और भ्रष्टाचार के मामले सामने आए।

अनियमितताएँ और घोटाले के आरोप

हालांकि, नई शराब नीति लागू होने के बाद अनियमितताओं और घोटाले के आरोप भी सामने आने लगे। 8 जुलाई 2022 को दिल्ली के तत्कालीन मुख्य सचिव नरेश कुमार की रिपोर्ट में इस घोटाले का खुलासा हुआ। रिपोर्ट में मनीष सिसोदिया सहित आम आदमी पार्टी के कई बड़े नेताओं पर गंभीर आरोप लगे। इन आरोपों के चलते दिल्ली सरकार ने अगस्त 2022 में नई आबकारी नीति को वापस ले लिया। बाद में दिल्ली के उपराज्यपाल वीके सक्सेना द्वारा सीबीआई जांच की सिफारिश की गई, और सीबीआई ने 17 अगस्त 2022 को केस दर्ज किया।

नेताओं की गिरफ्तारी और न्यायालय में सुनवाई

इस शराब घोटाले की वजह से आम आदमी पार्टी के नेताओं की ईमानदारी पर सवाल उठने लगे। दिल्ली के उपमुख्यमंत्री और शिक्षा मंत्री मनीष सिसोदिया को गिरफ्तार किया गया। इसके अलावा, आम आदमी पार्टी के राज्यसभा सांसद संजय सिंह और कई अन्य नेताओं को भी जेल जाना पड़ा। प्रवर्तन निदेशालय (ED) और सीबीआई (CBI) की पूछताछ से बचने के लिए मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने न्यायालय की शरण ली, परंतु वहां से उन्हें कोई राहत नहीं मिली। अंततः, 21 मार्च 2024 को अरविंद केजरीवाल को प्रवर्तन निदेशालय द्वारा गिरफ्तार कर लिया गया, और मुख्यमंत्री रहते हुए गिरफ्तार होने वाले वह पहले राजनेता बन गए।

केजरीवाल की अंतरिम जमानत

रविंद केजरीवाल ने विभिन्न न्यायालयों में जमानत याचिकाएं दाखिल कीं, लेकिन निचली अदालत से लेकर उच्चतम न्यायालय तक, कहीं से उन्हें जमानत नहीं मिली। इसके बावजूद, केजरीवाल मुख्यमंत्री बने रहे। उनके जेल में रहते हुए 18वीं लोकसभा का चुनाव 19 अप्रैल से 1 जून 2024 के बीच होना था। चुनाव प्रचार के लिए अरविंद केजरीवाल ने उच्चतम न्यायालय में अंतरिम जमानत याचिका दाखिल की, और उच्चतम न्यायालय ने उन्हें 10 मई से 1 जून तक की सशर्त जमानत दी।

सशर्त जमानत और चुनाव परिणाम

जमानत की शर्तों में मुख्यमंत्री कार्यालय और दिल्ली सचिवालय में प्रवेश नहीं करना और आधिकारिक फाइलों पर हस्ताक्षर नहीं करना शामिल था। दिल्ली में आम आदमी पार्टी और कांग्रेस ने मिलकर लोकसभा चुनाव लड़ा, लेकिन जनता ने केजरीवाल के पैंतरे को समझ लिया और लोकसभा चुनावों में आम आदमी पार्टी और कांग्रेस का खाता भी नहीं खुला। चुनाव प्रचार के लिए मिली अंतरिम जमानत की अवधि समाप्त होने के बाद 2 जून को अरविंद केजरीवाल को फिर से जेल जाना पड़ा।

सीबीआई की गिरफ्तारी और न्यायालय का निर्णय

प्रवर्तन निदेशालय वाले मामले में सुनवाई पूरी होने के बाद उच्चतम न्यायालय ने निर्णय के लिए मामले को सुरक्षित रख लिया। इसी दौरान न्यायालय की अनुमति लेकर सीबीआई ने 26 जून को अरविंद केजरीवाल को भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम, 1988 के तहत गिरफ्तार कर लिया। उच्चतम न्यायालय ने 12 जुलाई को प्रवर्तन निदेशालय के मामले में केजरीवाल को सशर्त जमानत दी, लेकिन सीबीआई की गिरफ्तारी के कारण उनकी रिहाई नहीं हो पाई।

अंतिम जमानत और राजनीतिक स्थिति

दिल्ली उच्च न्यायालय ने सीबीआई की गिरफ्तारी को उचित ठहराते हुए केजरीवाल को निचली अदालत जाने का निर्देश दिया, परंतु केजरीवाल निचली अदालत न जाकर 12 अगस्त को उच्चतम न्यायालय चले गए। उच्चतम न्यायालय ने 5 सितंबर को सुनवाई पूरी करके निर्णय के लिए मामले को सुरक्षित रख लिया। 13 सितंबर को न्यायमूर्ति सूर्यकान्त और न्यायमूर्ति उज्ज्वल भुइयां की पीठ ने केजरीवाल को सशर्त जमानत दे दी।

जमानत की शर्तों के तहत केजरीवाल को केस से संबंधित कोई सार्वजनिक टिप्पणी नहीं करने और हर सुनवाई पर ट्रायल कोर्ट के सामने उपस्थित होने का निर्देश दिया गया। साथ ही, वह अपने कार्यालय नहीं जा सकते और न ही सरकारी फाइलों पर हस्ताक्षर कर सकते, हालांकि बहुत जरूरी होने पर उन्हें फाइल पर हस्ताक्षर करने की अनुमति दी गई।

इस जमानत के बाद केजरीवाल जेल से बाहर आए, लेकिन न्यायालय की शर्तों के कारण वह मुख्यमंत्री के अधिकारों से वंचित रहे। यह स्थिति उनके और उनकी पार्टी के लिए राजनीतिक संकट का कारण बनी रही, जिससे उनकी ईमानदारी और प्रशासनिक क्षमता पर सवाल खड़े हुए।

अरविंद केजरीवाल, जो खुद को 'आम आदमी' बताने का दावा करते थे, अब उनकी छवि में बदलाव आ चुका है। उन्होंने अपनी छवि को एक साधारण व्यक्ति के रूप में स्थापित किया था, जो साधारण कपड़े पहनता है, साधारण गाड़ी में चलता है, साधारण सुरक्षा में रहता है और साधारण मकान में रहता है। लेकिन समय के साथ उनकी छवि में ये बदलाव साफ दिखाई देने लगे हैं।

छवि में बदलाव और सार्वजनिक असंतोष

मुख्यमंत्री आवास को शीशमहल जैसा बनवा देना, भारी सुरक्षा बंदोबस्त में चलना, और भ्रष्टाचार के आरोप में जेल यात्रा ने केजरीवाल की छवि को प्रभावित किया है। इसके अलावा, दिल्ली सरकार की निरंतर प्रशासनिक विफलता और जनमानस में फैलता असंतोष भी उनकी छवि को नुकसान पहुंचा रहा है। पहले सभी राजनीतिक पार्टियों को भ्रष्ट बताकर उनसे दूरी रखने का दावा करने वाले केजरीवाल, अब सत्ता के लालच में उन्हीं तथाकथित दागी राजनीतिक पार्टियों के साथ खड़े दिखाई दे रहे हैं।

सशर्त जमानत और इस्तीफा

सशर्त जमानत मिलने के कारण, अंततः अरविंद केजरीवाल को त्यागपत्र देने के लिए विवश होना पड़ा। उन्होंने आतिशी मार्लेना को मुख्यमंत्री बनाने की घोषणा की, हालांकि आतिशी पर भी कई आरोप हैं। सबसे पहले तो उन पर आरोप है कि मंत्री के रूप में उनका कार्यकाल पूरी तरह विफल रहा है। इसके अलावा, आम आदमी पार्टी की राज्यसभा सांसद स्वाति मालीवाल ने आरोप लगाया है कि आतिशी के परिवार ने आतंकी अफजल को फांसी से बचाने के लिए लंबी लड़ाई लड़ी थी।

केजरीवाल का राजनीतिक पैंतरा

केजरीवाल का इस्तीफा पूरी तरह से राजनीतिक पैंतरा है, न कि नैतिक आधार पर लिया गया फैसला। यह स्पष्ट है कि केजरीवाल को अपनी प्रभावहीन हो रही छवि को संवारने की चिंता सताने लगी है। उनके इस्तीफे का उद्देश्य आगामी चुनावों में जनता की सहानुभूति बटोरना और अपनी पार्टी की स्थिति को मजबूत करना हो सकता है।

केजरीवाल के इन कदमों को देखते हुए, यह देखना दिलचस्प होगा कि उनका यह पैंतरा कितना कारगर साबित होता है। जनता की नज़रों में उनकी छवि कितनी सुधरती है और आगामी चुनावों में इसका क्या असर पड़ता है, यह तो समय ही बताएगा।

निष्कर्ष

अरविंद केजरीवाल और AAP की यात्रा भ्रष्टाचार विरोधी आंदोलन से शुरू होकर सत्ता की गलियों तक पहुंची, लेकिन बीच में कई विवादों और आरोपों से गुजरनी पड़ी। अब यह देखना दिलचस्प होगा कि आगामी चुनावों में यह इस्तीफा और रणनीति पार्टी के लिए कितनी सफल साबित होती है।



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